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दिल्ली में बड़ी बदलाव: आम आदमी पार्टी ने शिक्षा नीति में लाया बड़ा सुधार
दिल्ली के विद्यालयों में अचानक से छात्रों की आवाज़ उठी — और इस बार सरकार ने सुना। आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने 15 अप्रैल को अपनी शिक्षा नीति में ऐसा बड़ा बदलाव किया, जिसकी उम्मीद कोई नहीं कर रहा था। अब सभी सरकारी और सहायता प्राप्त विद्यालयों में कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों के लिए वार्षिक परीक्षाएँ समाप्त हो गईं। बजाय उनके, अब हर छात्र को एक व्यक्तिगत विकास रिपोर्ट मिलेगी — जिसमें उसकी सोच, सामाजिक कौशल, रचनात्मकता और भावनात्मक बुद्धिमत्ता का मूल्यांकन होगा। ये बदलाव सिर्फ एक नई नीति नहीं, बल्कि एक विचारधारा का बदलाव है।
परीक्षा के डर से बचाना था मकसद
इस फैसले का पीछे एक गहरा कारण है। 2023 के एक अध्ययन में दिल्ली के 68% छात्रों ने बताया कि वे वार्षिक परीक्षाओं से इतने डरते हैं कि उनकी नींद उड़ जाती है। कई बच्चे अपने घरों में अपने अंकों के लिए माता-पिता से डरते हैं। एक शिक्षक ने बताया, "हम बच्चों को बताते हैं कि परीक्षा जीवन की अंतिम जाँच नहीं है, लेकिन जब वे घर जाते हैं, तो उनके माता-पिता उन्हें उसी तरह से देखते हैं।" इसलिए सरकार ने फैसला किया — अगर परीक्षा बच्चों को तोड़ रही है, तो उसे बदलना ही बेहतर है।
नई रिपोर्ट क्या है और कैसे काम करेगी?
अब हर छात्र को तीन महीने में एक विकास रिपोर्ट मिलेगी। इसमें शिक्षक लिखेंगे कि बच्चा किस विषय में रुचि रखता है, क्या वह दूसरों के साथ काम करने में सक्षम है, क्या वह नए विचारों को आजमाने के लिए तैयार है। एक बच्चे की रिपोर्ट में लिखा जा सकता है — "राहुल गणित में अच्छा नहीं है, लेकिन जब उसने अपने दोस्त की समस्या सुलझाने की कोशिश की, तो उसकी समस्या समाधान क्षमता बेहतरीन थी।" ये रिपोर्ट डिजिटल रूप में माता-पिता तक पहुँचेगी, और उन्हें अपने बच्चे की आत्मविश्वास की बात बताने का मौका मिलेगा।
शिक्षकों की तैयारी और चुनौतियाँ
लेकिन ये बदलाव सिर्फ एक आदेश से नहीं हो जाता। दिल्ली के 1,200 सरकारी स्कूलों में 28,000 शिक्षकों को इस नए तरीके के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। एक प्रशिक्षण सत्र में एक शिक्षिका ने कहा, "मैंने 15 साल तक अंक लिखे, अब मुझे बच्चों के दिल को पढ़ना है।" ये बदलाव उनके लिए भी बड़ा है। कुछ शिक्षक डर रहे हैं कि इस तरह की रिपोर्टें अधिक समय लेंगी, या इन्हें बाहरी नियंत्रण देखने के लिए जाँचा जाएगा। लेकिन सरकार ने वादा किया है कि ये रिपोर्टें किसी भी अधिकारी के लिए अंकों की तरह उपयोग नहीं की जाएंगी।
माता-पिता का प्रतिक्रिया: आशा और संदेह
कुछ माता-पिता खुश हैं। एक अंकल के घर की दादी ने कहा, "मेरा बेटा अब रोता नहीं है जब घर आता है।" लेकिन कई अभिभावक अभी भी संदेह में हैं। "अगर परीक्षा नहीं है, तो हम कैसे जानेंगे कि वह पढ़ रहा है?" एक व्यापारी पिता ने पूछा। ये सवाल वैध हैं। लेकिन दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग के अधिकारी ने कहा — "हम अब रोज़ के कार्यों को देखेंगे। एक बच्चा जो हर दिन किताब लाता है, जो सवाल पूछता है, जो दूसरों की मदद करता है — वह आगे बढ़ रहा है।"
क्या ये भारत के लिए मॉडल बन सकता है?
दिल्ली का ये प्रयोग अभी शुरू हुआ है, लेकिन इसका असर बाहर भी दिखने लगा है। महाराष्ट्र और केरल के शिक्षा मंत्री ने इसे "एक आशाजनक नमूना" कहा है। विश्व बैंक के शिक्षा विशेषज्ञ डॉ. अनुराधा ने कहा, "भारत में अभी तक हमने परीक्षा को शिक्षा का एकमात्र मापदंड बनाया है। ये पहली बार है जब कोई सरकार बच्चे के व्यक्तित्व को उसके अंकों से अलग देख रही है।" अगर ये नीति सफल हुई, तो यह देश के अन्य राज्यों के लिए एक नया मार्ग बन सकती है।
अगला कदम: क्या होगा कक्षा 9 से 12 के लिए?
अभी तक ये बदलाव कक्षा 1 से 8 तक ही सीमित है। लेकिन शिक्षा विभाग ने घोषणा की है कि अगले वित्तीय वर्ष तक कक्षा 9 और 10 के लिए भी एक समान ढांचा तैयार किया जाएगा। कक्षा 11 और 12 के लिए अभी भी बोर्ड परीक्षाएँ रहेंगी — लेकिन उनमें भी व्यक्तिगत विकास अंक जोड़े जाएंगे। ये बात बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि जब एक बच्चा 10वीं कक्षा में जाता है, तो उसके दिमाग में अभी तक ये विचार बसा होता है कि "अंक ही सब कुछ हैं"। दिल्ली का ये नया रास्ता उस विचार को धीरे-धीरे तोड़ सकता है।
पिछले प्रयास और इस बार क्यों अलग?
2019 में भी दिल्ली सरकार ने "नो बोर्ड एग्जाम" की घोषणा की थी, लेकिन वह नीति अंततः रद्द हो गई क्योंकि शिक्षकों के पास समय और तकनीक नहीं थी। इस बार बदलाव अलग है — एक नया डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया गया है, जिसमें शिक्षक एक टैप पर बच्चे की प्रगति दर्ज कर सकते हैं। साथ ही, प्रत्येक स्कूल में एक "विकास सलाहकार" नियुक्त किया जाएगा — जो शिक्षकों की मदद करेगा। ये बार तैयारी है, सिर्फ घोषणा नहीं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या इस बदलाव से छात्रों की पढ़ाई कम हो जाएगी?
नहीं। बल्कि ये बदलाव पढ़ाई को गहरा बनाने के लिए है। अब बच्चे याद करने के बजाय समझने लगेंगे। एक अध्ययन में दिखा कि जब बच्चों को अंकों का डर नहीं रहता, तो वे अधिक प्रश्न पूछते हैं और अधिक खोज करते हैं। दिल्ली के 15 स्कूलों में इस नीति के पायलट चरण में छात्रों ने अपने घर पर पढ़ाई का समय 40% बढ़ा दिया।
माता-पिता को क्या करना चाहिए?
अब आपको बच्चे के अंक नहीं, बल्कि उसकी रुचि और व्यवहार के बारे में पूछना होगा। उसके द्वारा बनाया गया एक चित्र, एक गीत, या एक समस्या का हल — इन्हें देखें। अगर वह किसी विषय में रुचि लेता है, तो उसे उसके लिए अवसर दें। अंकों की जगह आत्मविश्वास को बढ़ाएँ।
क्या ये नीति गरीब बच्चों के लिए भी काम करेगी?
हाँ। यही तो इस नीति की सबसे बड़ी ताकत है। पहले गरीब बच्चे अक्सर परीक्षा में अच्छा नहीं कर पाते थे, इसलिए उन्हें अपना आत्मविश्वास खोना पड़ता था। अब हर बच्चा अपने तरीके से आगे बढ़ सकता है — चाहे वह गाना गाए, चित्र बनाए, या दूसरों की मदद करे। ये नीति असमानता को कम करने का एक शक्तिशाली तरीका है।
क्या इससे शिक्षकों का काम आसान होगा?
शुरुआत में नहीं — ये ज्यादा काम है। लेकिन लंबे समय में, हाँ। जब बच्चे डर से नहीं, बल्कि उत्सुकता से सीखने लगेंगे, तो शिक्षकों को अधिक शांति से काम करना होगा। वे अब अधिक रचनात्मक तरीके से पढ़ाएंगे — जैसे कहानियों से गणित सिखाना। ये काम अधिक खुशी देगा।